पाक विस्थापितों ने कहा : जरूरत पड़ी तो देंगे सेना का साथ

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पाक विस्थापितों ने कहा : जरूरत पड़ी तो देंगे सेना का साथ

सीमा सन्देश # पूगल। भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच सीमावर्ती गांव पूगल में बसे पाक विस्थापितों की देशभक्ति की मिसाल सामने आई है। 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तान से पलायन कर ये लोग भारत आए थे। उस समय उन्हें शरणार्थी के रूप में प्रवेश मिला और बाद में भारतीय नागरिकता प्रदान की गई। आज ये लोग भारत को ही अपना सब कुछ मानते हैं।
13 वर्ष की उम्र में पाकिस्तान से आए भीख सिंह बताते हैं कि उस वक्त वे आठवीं कक्षा में पढ़ते थे। धर्म के आधार पर उन्हें प्रताड़ित किया जाता था, इसलिए युद्ध के दौरान मौका मिलते ही परिवार ने पाकिस्तान छोड़ दिया। वहीं, नौ साल की उम्र में भारत पहुंचे तेजमाल सिंह कहते हैं कि पाकिस्तान ने अपने नागरिकों तक के साथ इंसाफ नहीं किया। उन्होंने ‘आॅपरेशन सिंदूर’ को पाकिस्तान की नापाक हरकतों का सटीक जवाब बताया।
केवल दो माह की उम्र में भारत आए एक अन्य विस्थापित कहते हैं कि उनके बुजुर्गों ने पाकिस्तान में भारी यातनाएं सही थीं, लेकिन भारत में हमेशा सम्मान और सुरक्षा मिली।
विस्थापित भीमदान देवल बताते हैं कि राजस्थान और गुजरात की सीमाओं पर आज भी हजारों पाक विस्थापित बसे हुए हैं। वे कभी शरणार्थी शिविरों में थे, आज सरकारी नौकरियों और व्यवसायों में कार्यरत हैं। भीमदान कहते हैं कि यदि देश को जरूरत पड़ी तो वे सीमा पर सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होंगे।
इन विस्थापितों की कहानियां इस बात का प्रमाण हैं कि भारत न केवल उन्हें शरण देने वाला देश है, बल्कि उनका गर्व और भविष्य भी है।

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