भरतपुर. देशभर में तेजी से बढ़ रहे साइबर अपराधों के बीच राजस्थान पुलिस को एक बड़ी सफलता हाथ लगी है. भरतपुर रेंज साइबर सेल ने 400 करोड़ रुपए से अधिक की साइबर ठगी में शामिल एक ऐसे गिरोह के सक्रिय सदस्य को गिरफ्तार किया है, जो आॅनलाइन गेम और ई-कॉमर्स के नाम पर आम नागरिकों को जाल में फंसाकर करोड़ों की ठगी कर रहा था. यह गिरोह अत्याधुनिक तकनीकों और फर्जी कंपनियों के माध्यम से वित्तीय धोखाधड़ी को अंजाम देता था. इस संगठित साइबर ठगी के पीछे का मास्टरमाइंड शशिकांत सिंह बताया जा रहा है. पुलिस ने मास्टरमाइंड के दोस्त देवेंद्र पाल सिंह को पकड़ा है. देवेंद्र मुख्य सरगना का बचपन का दोस्त और नेटवर्क का अहम सदस्य है.
पुलिस महानिरीक्षक राहुल प्रकाश ने बताया कि यह गिरोह न केवल राजस्थान, बल्कि देश के कई राज्यों में फैला हुआ था, जो आॅनलाइन पेमेंट गेटवे और मर्चेंट कंपनियों के बीच काम कर रहा था. यह गिरोह आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को मोहरा बनाकर उनके नाम से फर्जी कंपनियां खोलता और फिर उन कंपनियों के जरिए साइबर ठगी की पूरी श्रृंखला को संचालित करता.
प्रकरण का खुलासा ऐसे हुआ: आईजी राहुल प्रकाश ने बताया कि 6 मार्च 2025 को धौलपुर साइबर थाने में हरी सिंह नामक पीड़ित ने 1930 साइबर हेल्पलाइन पर फिनो पेमेंट बैंक से संबंधित ठगी की शिकायत दर्ज करवाई. रेंज साइबर वॉर रूम की टीम ने जब इस शिकायत का विश्लेषण किया, तो सामने आया कि इसी बैंक खाते के विरुद्ध पहले ही करीब 3000 शिकायतें दर्ज थीं, जो अब 4000 से अधिक हो चुकी हैं. मामले की जांच का जिम्मा पुलिस निरीक्षक महेन्द्र सिंह को सौंपा गया, जिनके साथ सहायक उप निरीक्षक दिनेश कुमार और हेड कांस्टेबल जितेन्द्र सिंह की विशेष टीम गठित की गई.
गिरोह की ठगी का तरीका : जांच में सामने आया है कि मुख्य सरगना शशिकांत सिंह और उसके सहयोगी रोहित दुबे ने मिलकर अबंडेन्स पेमेंट सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड (ट्रायपे) नाम से एक कंपनी स्थापित की थी, जिसका मुख्यालय बेंगलुरु (कर्नाटक) में है. यह कंपनी मर्चेंट और भुगतान गेटवे के बीच की मध्यस्थ इकाई के रूप में कार्य करती थी और हर लेन-देन पर मात्र 0.20 प्रतिशत का कमीशन लेती थी. लेकिन इसी के माध्यम से यह गिरोह बड़ी साइबर ठगी को अंजाम दे रहा था.
बेरोजगारों को फंसाते : गिरोह गरीब और बेरोजगार लोगों को पैसे का लालच देकर उनके नाम से ई-कॉमर्स और आॅनलाइन गेमिंग आधारित फर्जी कंपनियां रजिस्टर करवाता. इस प्रक्रिया में एक तीसरा व्यक्ति रीसेलर के रूप में कार्य करता था, जो गिरोह और नकली निदेशकों के बीच पुल का कार्य करता. उत्तर प्रदेश के बमरौली का रहने वाला गिरफ्तार आरोपी देवेन्द्र पाल सिंह इस पूरी प्रक्रिया का संचालन करता था. दस्तावेज तैयार करना, फर्जी कंपनी रजिस्ट्रेशन, मर्चेंट बनवाना और पेआउट की पूरी प्रणाली का नियंत्रण, यह सब उसी की जिम्मेदारी थी. गिरोह की कार्यशैली इतनी व्यवस्थित और हाईटेक थी कि कोई भी आसानी से इस ठगी के जाल को पहचान नहीं पाता था.
400 करोड़ की साइबर ठगी करने वाली गैंग का पदार्फाश, मुख्य सरगना का दोस्त गिरफ्तार

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