राजस्थान की सियासत में परिवारवाद की अमरबेल, ऐसे 43 विधायक और सांसद

राजस्थान की सियासत में परिवारवाद की अमरबेल, ऐसे 43 विधायक और सांसद

जयपुर। भले सभी राजनीतिक दल परिवारवाद समाप्त करने का दंभ भरते हों, लेकिन एक भी पार्टी इससे अछूती नहीं है. राजस्थान की सियासत में भी परिवारवाद अमरबेल की तरह बढ़ रही है. एडीआर की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में हर छठा नेता परिवारवाद के चलते सियासत में पांव जमाए हुए है. राजस्थान में 32 विधायक, 7 लोकसभा और चार राज्यसभा सांसद ऐसे हैं, जिनका परिवार पहले से राजनीति में सक्रिय है. ऐसे में समझा जा सकता है कि राज्य की सियासत में परिवारवाद की जड़ें कितनी गहरी हैं.
आम कार्यकतार्ओं को मिलना चाहिए मौका: वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक राजीव जैन का कहना है कि परिवारवाद से कोई दल अछूता नहीं है, चाहे भाजपा हो या कांग्रेस या अन्य दल. इन दलों से विधायक-सांसद बने नेता यही चाहते हैं कि उनकी विरासत बेटे, बेटी, पत्नी या भाई संभाले. वे इसके लिए पार्टी पर दबाव बनाते हैं. मजबूरी में पार्टी को बात माननी पड़ती है. पार्टी बात नहीं माने तो ऐसे नेता बगावत का बिगुल बजा देते हैं. इससे पार्टी को नुकसान होता है. इसी को देखते पार्टी वंशवाद पर मुहर लगा देती है.
गलत परंपरा: राजीव जैन का कहना है कि मारवाड़ और शेखावाटी में कई राजनीतिक परिवार इतने प्रभावी हैं कि उन्हीं के परिवार से विधायक-सांसद चुनकर आते रहे हैं. हालांकि यह गलत परंपरा है. परिवार से टिकट मिलते रहेंगे तो आम कार्यकर्ता का क्या होगा. हालांकि अब परिवारवाद के खिलाफ आवाज उठने लगी है. ताजा उदाहरण झुंझुनू विधानसभा उपचुनाव में दिखा, जहां पार्टी कार्यकतार्ओं ने अंदरखाने कांग्रेस प्रत्याशी को हरा दिया. सभी दलों को चाहिए कि परिवारवाद से बचें और आम कार्यकतार्ओं को भी मौका दें.
राजनीतिक शुचिता की दरकार: राजस्थान इलेक्शन वॉच के कन्वीनर कमल टांक ने कहा कि सभी दलों को परिवारवाद दूर करना चाहिए. कांग्रेस, सपा, राजद, डीएमके, जेडीएस, एआईएमआईएम जैसे कई दलों के अध्यक्ष ही एक परिवार से ही आते हैं, जो गलत है. सभी दलों को पार्टी में लोकतंत्र स्थापित करना चाहिए. पार्टियों के प्रमुख पदों पर परिवार के अलावा दूसरे नेताओं को मौका क्यों नहीं दिया जाता. नेताओं को राजनीतिक शुचिता बनानी चाहिए. बड़ा सवाल है कि किसी सांसद, विधायक के बेटे को इसलिए चुनाव लड़ने से रोका जाए कि वो परिवारवाद की उपज है तो यह भी संविधान के अनुच्छेद 11 का उल्लंघन है. नेता के बेटे या बेटी या पत्नी में राजनीतिक परिपक्वता है और जनाधार है तो उन्हें चुनाव लड़ने से कैसे रोका जा सकता है. पार्टियों को तय करना चाहिए कि परिवारवाद से कैसे बचा जाए.
राज्य की सियासत में दिग्गज परिवार: राजस्थान की राजनीति में बड़े परिवारों का वर्चस्व रहा है. मारवाड़ में नाथूराम मिर्धा, रामनिवास मिर्धा, परसराम मदेरणा, शेखावाटी में शीशराम ओला, चौधरी नारायण सिंह जैसे परिवारों का राजनीति में बोलबाला रहा है. पूर्वी राजस्थान में राजेश पायलट और हाड़ौती में वसुंधरा राजे का परिवार सियासी अखाड़े में जमा है. दिलचस्प है कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की मां सोनिया गांधी भी राजस्थान से राज्यसभा सांसद हैं. सोनिया के पति राजीव गांधी, सास इंदिरा गांधी, नाना ससुर प्रधानमंत्री रह चुके हैं.

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