सीमा सन्देश#बाड़मेर। यह पहला मौका नहीं है जब पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ नापाक हरकत की हो। वर्ष 1965 और 1971 के युद्धों में भारत ने न सिर्फ पाकिस्तान को करारा जवाब दिया, बल्कि उसका मनोबल भी तोड़ा। इसके बावजूद पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा। ऐसे ही हालातों के बीच बाड़मेर जिले में रह रहे पाक विस्थापितों ने 1971 के युद्ध की यादें साझा कीं और वर्तमान संकट में भी भारतीय सेना के साथ खड़े रहने की बात कही।
पाकिस्तान के मिठड़िया चारण गांव से आए भैराराम बताते हैं कि उनका परिवार हिंदुस्तान में बसना चाहता था और 1971 के युद्ध के दौरान उन्हें वह अवसर मिला। भैराराम कहते हैं, ‘हमारे साथ कई परिवारों ने बाड़मेर में आकर बसने का फैसला किया। जब भारतीय सेना हमारे गांव आई तो उन्होंने सर्च आॅपरेशन तो चलाया, लेकिन आम नागरिकों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया, बल्कि सतर्क किया,’।
उस समय के हालातों को याद करते हुए भैराराम बताते हैं कि गांवों में रास्ते नहीं थे, सिर्फ रेत के ऊँचे-ऊँचे टीले थे। ऐसे में सेना की गाड़ियां नहीं पहुंच पाती थीं। तब स्थानीय ग्रामीणों ने सेना की मदद की। छाछरो गांव से लगभग 25 किलोमीटर दूर ऊँटों पर पानी लाकर सेना को उपलब्ध कराया जाता था।
भैराराम का कहना है कि तब के मुकाबले आज का भारत बहुत बदल चुका है। उन्होंने कहा ‘अब साधन और संसाधन हैं, मिनटों में पहुंचा जा सकता है। लेकिन जो जज्बा तब था, वह आज भी बरकरार है। अगर देश को जरूरत पड़ी तो हम तन, मन और धन से सेना के साथ हैं’।
पाक विस्थापित चेतनराम ने भी 1971 के युद्ध के दौरान भारत में बसने के अनुभव साझा किए। उनका कहना है कि उस समय गांवों में भारी भगदड़ और अराजकता थी। उन्होंने बताया कि ‘हमारे परिवार ने भारत आकर राहत महसूस की। रास्तों की स्थिति बेहद खराब थी, लेकिन हमने सेना की मदद के लिए रास्ते बनवाए, रसद सामग्री और पानी पहुंचाया। सैनिकों का हौसला बढ़ाना हमारा फर्ज था’।
चेतनराम ने वर्तमान हालातों पर कहा, ‘आज का भारत एक सशक्त राष्ट्र है। पाकिस्तान भारत के सामने कहीं नहीं टिकता। यहां के लोगों में जोश की कोई कमी नहीं है। यदि हालात बिगड़ते हैं, तो हम फिर से भारतीय सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहेंगे।’
पाक विस्थापितों की जुबानी 1971 की जंग : आज भी सेना का साथ देने को हैं तैयार

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