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एयर इंडिया का वो पायलट जो बना सबसे कम उम्र का प्रधानमंत्री

नई दिल्ली. हिंदुस्तान में किसी भी कोने में जब कभी राजनीतिक सूचिता, सौम्यता, युवा, दूरदर्शिता, शिक्षा, तकनीक और बेहतरीन नजरिए की बात होगी तो एक ऐसे प्रधानमंत्री हमेशा ही याद आएंगे जो उड़ता तो आसमान में था लेकिन पैर हमेशा जमीन पर रहे। राजनीति उसके घर की हर चौखट में थी लेकिन उसे राजनीति से कोई मतलब नहीं था। वह भारत के सबसे ताकतवर राजनीतिक परिवार से थे लेकिन वह 5000 रुपए की नौकरी में इंडिया गेट पर अपनी पत्नी के साथ आइसक्रीम खाते हुए सबसे खुश था।

होनी को कौन टाल सकता था। किस्मत को कुछ और ही मंजूर था और एक दुर्घटना ने उसे एक पायलट से सीधे प्रधानमंत्री बना दिया। यहां भी जब उस शख्सियत ने कदम रखा तो उसने बहुत साफगोई से सरकारी कार्य प्रणाली के भ्रष्टाचार पर सीधे यह कहते हुए उजागर किया कि हम तो एक रुपए भेजते है जनता तक 15 पैसे मुश्किल से पहुंचते हैं।

किसी ने राजीव गांधी को तंज किया तो कि आप तो दून में पढ़े हो तो क्या आम लोगों की शिक्षा प्रणाली समझेंगे तो फिर एक ऐसे विद्यालय की नींव रखी जो दून की तरह ही आवासीय शिक्षा दे रही है बल्कि यह देश की सबसे बेहतरीन नि:शुल्क शिक्षा प्रणाली बनी हुई है। आज बात उसी सौम्य, युवा, दूरदर्शी शख्सियत भारत रत्न स्वर्गीय राजीव गांधी की। आज उनका 79वां जन्मदिन है।

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राजीव के केंद्र में युवा

राजीव गांधी ने कांग्रेस पार्टी और देश दोनों की कमान संभालने के बाद युवाओं को तरजीह दी। राजनीति बेहतर करने के लिए वह कई क्षेत्रों से कई युवाओं को आगे लेकर आए। इसमें अमिताभ बच्चन, राजेश पायलट, माधवराव सिंधिया, अरुण नेहरू, एमजे अकबर, ओमप्रकाश सहित अलग अलग प्रदेशों से युवाओं को राजनीति में लाए और आगे बढ़ाया। वहीं वोट देने की उम्र को भी घटाकर 21 से 18 कर दिया। इसके साथ ही राजनीति की पूरी दिशा बदल गई। युवा न केवल देश की राजनीति तय कर रहे थे बल्कि दिशा भी बदलने को तैयार हुए।

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जवाहर नवोदय विद्यालय की स्थापना
युवाओं को केवल राजनीति से ही नहीं जोड़ा बल्कि उससे पहले का भी प्रबंध किया। बेहतर युवा निर्माण के लिए राजीव गांधी ने जवाहर नवोदय विद्यालय की स्थापना की। इस विद्यालय में दून के तर्ज पर होनहार छात्रों को नि:शुल्क आवासीय शिक्षा का प्रबंध किया। नवोदय विद्यालय के पुरातन छात्र संगठन के राष्ट्रीय संयोजक सीताराम नारनोलिया बताते हैं कि आज उसी विद्यालय की नींव से भारत का निर्माण हो रहा है। यहां 15 लाख बच्चों ने शिक्षा ली। अब 700 से अधिक देश और राज्य सेवा के अधिकारी हैं। 30 हजार से ज्यादा आईआईटीयन हैं। सबसे ज्यादा डॉक्टर नवोदय से ही निकले हैं। नवोदय विद्यालय से पढ़ हुए वर्तमान में झांसी डीएम रविन्द्र कुमार ने एवरेस्ट की चढ़ाई भी पूरी की है।



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पहली बार भारत में लाए कंप्यूटर
शिक्षा के इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए सूचना क्रांति और कंप्यूटर क्रांति को भारत लाने का काम किया। उन्होंने तकनीकी क्षेत्र में काम करते हुए सबसे पहले कंप्यूटर को भारत लेकर आए। इसी का परिणाम है कि आज सुंदर पिच्चई जैसे कई भारतीय अमरीकी की सिलिकान वैली संभाल रहे हैं। भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार में सबसे ज्यादा सर्विस सेक्टर के आईटी सेक्टर से पैसा आ रहा है। भारतीय रेलवे में टिकट जारी होने की कंप्यूटरीकृत व्यवस्था भी राजीव गांधी की ही देन है। पूर्व प्रधानमंत्री का मानना था कि विज्ञान और तकनीक के बिना देश का विकास नहीं हो सकता है।

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सुचिता की राजनीति और सौम्य व्यवहार

राजीव गांधी की राजनीति में तल्ख व्यवहार शायद ही देखने को मिला हो। विपक्षी उनके व्यवहार के कायल थे। राजीव का अचानक पता लगा कि विपक्ष के प्रमुख नेता अटल बाजपेयी जी को एक गंभीर बीमारी है और उसका इलाज अमरीका ही हो सकता है। अटल जी के पास इतने पैसे थे नहीं कि वह अमरीका जाकर इलाज कराएं। फिर क्या था राजीव गांधी ने अटल जी को बुलवाया और उन्हें अमरीकी प्रतिनिधि मंडल के साथ भेज दिया। फिर अटल जी का इलाज सरकारी खर्च पर अमरीका में हुआ।

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राजनीति से रहना चाहते थे दूर

राजीव गांधी राजनीति से दूर रहना चाहते थे। एक बार उन्हें स्वरूपानंद सरस्वती ने राजनीति में आने की सलाह दी तो इंदिरा गांधी ने कहा था कि ये राजनीति करेगा तो घर कैसे चलेगा? नियति को कुछ और मंजूर था 1981 में राजीव गांधी को अमेठी सीट चुनाव लड़ना पड़ा और 2 लाख मत से जीत हासिल की। तीन साल बाद 1984 में देश के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री बन गए और 1991 में उनकी हत्या कर दी गई। सबसे बड़ी बात है कि राजीव गांधी की हत्या पहले बम की टेस्टिंग करीब दो सप्ताह पहले वीपी सिंह पर की गई थी।

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शेषन से राजीव का रिश्ता
चुनाव आयुक्त रहे टीएन शेषन का रिश्ता सिर्फ राजनेताओं में राजीव गांधी से बेहतर माना जाता है। आयुक्त बनने की जब पेशकश हुए तो शेषन परेशान हुए और उन्होंने राजीव गांधी को ढाई बजे फोन मिला दिया। राजीव गांधी ने उन्हें आवास पर बुला लिया फिर शेषन से बातचीत करने के बाद कहा कि वह बाद में पछताएंगे। इसके बाद जो हुआ वो इतिहास है। टीएन शेषन ने ही सीपीजी को डिजायन किया था और उन्होंने पूर्व पीएम और उनके परिवार को भी अमरीका की तर्ज पर इस दायरे में लाने को कहा था लेकिन राजीव नहीं माने। अगर राजीव गांधी शेषन की इस सलाह को मान जाते तो राजीव शायद आ जिंदा होते।

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विवाद भी…

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