श्रीगंगानगर. सोमासर, ठुकराना, फरीदसर और राइयांवाली…राजस्थान के सूरतगढ़ थर्मल पावर प्लांट के आसपास बसे इन गांवों की पहचान टिब्बा गांव के रूप में थी, लेकिन अब इन्हें टीबी वाले गांव कहा जाता है। वजह है सूरतगढ़ थर्मल से उड़ने वाली राख। कोयले से रोज 2820 मेगावाट बिजली बनाने वाले राजस्थान के इस सबसे बड़े थर्मल प्लांट की राख से गांवों की जमीनों पर फसलों का पर्याप्त उत्पादन नहीं हो पा रहा। यह राख उन्हें टीबी, अस्थमा और सिलिकोसिस का शिकार बना रही है। कई मौतों के बाद अब लोग गांव से पलायन करने लगे हैं। सीमेंट कंपनियां भी यहां से राख उठवाने में नियमों का उल्लंघन कर रही हैं। इससे भी लोग बीमार हो रहे हैं।
टीबी तो हुई ही, लाखों का कर्ज भी हो गया
गांव सोमासर निवासी श्योनाथ (52) करीब 13 साल टीबी से पीड़ित रहे। हालत यह हो गई कि शरीर 20-25 किलो ही रह गया। सरकारी इलाज बेअसर रहा। फिर जयपुर जाकर मंहगा इलाज करवाया। इसके लिए लाखों का कर्ज भी लेना पड़ा।